Monday, May 18, 2020

रमा द्विवेदी

हाइकु कविताएँ


14 May - 2020
                      =============================
आज समूह पर डा. रमा द्विवेदी का एक हाइकु प्रकाशित किया जा रहा है।
समूह पर सभी सदस्य अपनी टिप्पणी सीधे पोस्ट कर सकते हैं।


-डा जगदीश व्योम 
                      =============================


                                                 - 01 -

मिट्टी के दिये
तैरते हैं गंगा में
प्रकाश भरे

-रमा द्विवेदी


=========================================
विभिन्न टिप्पणियाँ
=========================================

---------------------
मेरे विचार से इस हाइकु का अभिप्राय है कि दीप आशा और विश्वास का प्रतीक है, माँ गंगा हमारी आस्था का।गंगा मैया हमारा कल्याण करें, यही कामना लिए दीप गंगा में प्रवाहित हो रहा है । आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो पितरों की विदाई में भी दीप प्रवाहित किये जाते हैं, तब दीप यह प्रकट करता है कि आत्मा अमर है और जीवन धारा भी गंगा की धारा की तरह अनन्त और शाश्वत है ।

-सुरंगमा यादव
---------------------


गंगा जी में प्रकाश भरे तैरते दियों में दिव्य,अलौकिक, मनमोहक दृश्य चित्रण का भाव परिलक्षित हो रहा हैं। अगर दूसरे भाव से परखे तो मिट्टी के दिये (मानव) तैरते गंगा में (जीवन के भवसागर में) यहाँ तक भाव स्पष्ट हैं लेकिन प्रकाश भरे यहाँ  इस भाव का संधि विच्छेद हो जाता हैं कि सभी मानव व्यक्तित्व प्रकाशमान नही होते। अतः पहला भाव ही दृष्टिगोचर हो रहा हैं।मनोहारी दृश्य का सुंदर हाइकु।   
-त्रिलोचना कौर
---------------------


मिट्टी का दिया यानी असहाय कमजोर .. कच्चा रहा तो खुद तैरना क्या.. दूसरे को सहायता नहीं पहुँचा सकता... लेकिन जल में बह रहा है.. प्रकाश फैला रहा है... कभी किसी को कमतर नहीं समझना चाहिए का सुंदर सन्देश देता हुआ.... तीन पँक्ति स्वतंत्र नहीं है अतः हाइकु होने पर संदेह पैदा कर रही है रचना

-विभा रानी श्रीवास्तव
---------------------


अमिधा शब्द शक्ति से सुसज्जित, दृश्य उपस्थित करता सुन्दर चित्रात्मक हाइकु !

-मीनू खरे
---------------------


आस्था और उम्मीद के शब्दों को प्रवाह देता मिट्टी से जुड़ा हुआ एक सहज सरल सार्थक हाइकु
रमा जी का
-अविनाश बागड़े
----------------------


यह भी हो सकता है कि
मिट्टी का दिया क्षणभंगुर मानव शरीर का प्रतीक है, प्रकाश आत्मा है और गंगा में प्रवाहित होना पवित्र संसार में दूसरों को ज्योति प्रदान करते हुए संचरण करने का सूचक है।
-डा जगदीश व्योम
---------------------

यहां 'मिट्टी के दिए' को यदि मृत शरीर से तुलनात्मक ‌द्ष्ठी से देखा जाए तो उपयुक्त रहेगा ,जिस प्रकार गंगा में मृत शरीर जो कभी प्रकाववान था वह दिए के समान ही बहता नजर आता है जब तक डूब नहीं जाता उसी प्रकार मिट्टी के दिए हेजब तक डूब नहीं जाते प्रकाशभरे रहते हैं ,,,

-रति चौबे
---------------------

मिट्टी के दिये .. दिये शब्द का सुन्दर प्रयोग . अपने छोटे होने के बावजूद अंधेरे मे स्वयं को प्रकाशित और अंधेरे से निरन्तर संघर्ष का प्रतीक,  तैरते गंगा मे धारा की परिवर्तनशीलता निरन्तर बहाव मे खुद को जलाए रखना... उस पूरे वातावरण को अपने प्रभाव से प्रकाश से भरना...
सुन्दर हाइकु ।

-उमेश मौर्य
---------------------

माटी के दीये सा साधरण दिखने वाला एक शिक्षक समाज की धारा में ज्ञान का पुंज लिए शिक्षा का प्रकाश फैला रहा है
-राजीव गोयल
---------------------


रमा जी का हाइकु बहुत गहरे आध्यात्मिक भाव को दर्शाता है।मिट्टी का शरीर,आत्मा के प्रकाश से प्रकाशित होकर गंगा में तैर रहा है।शरीर नश्वर है,लेकिन आत्मा अमर है और प्रकाशित है।बहुत अच्छे हाइकू के लिए रमा जी का बधाई।

-आशा पांडेय
---------------------


पंच-तत्वों में से एक तत्व (मिट्टी) का मिलन जब दूसरे तत्व (जल) से होता है तो उनके पावन मिलन से उत्पन्न प्रकाश से जग आलोकित हो उठता है।

-सुषमा अग्रवाल
---------------------


आध्यात्मिक आस्था को सहेजता यह हायकू अति सुंदर सहज व सरल और सत्यता को दर्शाता है रमाजी को बहुत  बहुत बधाई ।

-चन्द्रभान मैनवाल
---------------------


पंचतत्व को दर्शाता हुआ हाइकु।तेल रूपी श्वास के समाप्त हो जाने पर जोत आकाश में विलीन हो कर शरीर प्रकृति में मिल जायेगा।

-कमलेश चौरसिया
---------------------


मिट्ठी के दिए, कुछ दूर तैरकर गंगा  में डूब जाते हैं। जीवन की क्षणभंगुरता को ब्यक्त करते आशा ,विश्वास को जगाते । परिवर्तन शाश्वत है। और भारतीय संस्कृति का प्रतीक। 
-डा स्टेला
---------------------


वाहः बहुत सुंदर हाइकु है आदरणीया रमा जी का। इस हाइकु को मैंने इस नजरिए से देखा कि गंगा तट पर आरती के पश्चात रात्रि में मिट्टी के दीप समूह नश्वर शरीर को हँसते हँसते त्याग देते हैं।जीवन को जीने की कला व जीवन की क्षणभंगुता को दर्शाता सुंदर हाइकु

-अभिषेक जैन
---------------------


मुझे लगता है इस हाइकु में तीसरी पंक्ति "प्रकाश भरे" से ही इसके अर्थ खुलते हैं। पहली और दूसरी पंक्ति एक दॄश्य को प्रस्तुत कर रही है .. जिस से हम सब वाकिफ हैं। प्रकाश भरे पंक्ति उस  मनोकामना के पूर्ण होने का भी संकेत देती है ...जिस मनोकामना को करते हुए ये दीये गंगा में प्रवाहित किये गए हैं। 
बाकी आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाये तो मैं आदरणीय व्योम जी और त्रिलोचना जी के कथन से सहमत हूँ। 
आदरणीया रमा जी को बहुत बधाई।

-आभा खरे
---------------------


मिट्टी का दिया कुम्हार बनाता है।जिसकी आर्थिक स्थिति कमजोर होती है,वह सारा जीवन दिया बनाकर भी निर्धन ही रहता है, परन्तु उसके बनाये हुए दीपों से जग रोशन होता है और जीवन से अंधकार दूर होता है एक छोटा सा दिया जीवन से अंधकार रूपी अज्ञान  को दूर करता है और ज्ञान का प्रकाश फैलाता है। मनुष्य के अन्तिम सफर में भी वह साथ रहकर अन्तिम यात्रा को भी प्रकाशित कर देता है।
    रमा जी आपका हाईकु अनुपम, ज्ञानवर्धक है।आपको बहुत-बहुत बधाई व ढेरों शुभकामनाएं 
                      
-सविता बरई 'वीणा'
---------------------


 मिट्टी के दिये तेरते हैं गंगा में यह दृश्य सुंदर पवित्रता का भाव निर्माण करता हैं । स्वयं प्रकाशमान हैं । तिसरी पंक्ति में कुछ भी नयापन नहीं हैं ; यह अनुभूति तो पहले दोनों पंक्तियों में व्यक्त हुई हैं । अगर इस पंक्ति में मानवीय जीवन का नया पैलू उजागर होता, तो हाइकु में चार चाँद लगते ।
      
-तुकाराम पुंडलिक खिल्लारे
---------------------


भारतीय संस्कृति की यही विशेषता है कि हमारे हर कर्म और परम्पराओंं में दर्शन, भक्ति, आध्यात्म और जीवन मूल्यों निहित होता है। 
  इसी परिप्रेक्ष्य में जल स्त्रोतों की पूजा, आरती, जलते दीप प्रवाहित करने की परम्परा भी है। यह जितनी भक्तिभाव को लिए है उतनी ही आत्मविभोर कर नैसर्गिक सुख और संतुष्टि भी समाये हुए है।
प्रस्तुत हाइकु सशक्त और संपूर्ण हाइकु है। जिस दृष्टि से देखो,वही आभास होगा। 
प्रत्यक्ष में जहाँ दृश्य अलौकिक और आत्मविभोर कर ऊर्जावान कर  देने वाला है, अप्रत्यक्ष मेंं प्रतीकों के माध्यम से संदेशवाहक बन प्रेरक भी है।
पानी केरा बुदबुदा... सदृश्य जीवन दर्शन भी है।
गागर में सागर ... की संपूर्णता का आध्यात्म भी है।
और मामूली सा लगने वाले दीप में प्रकाश की असीम सामर्थ्य है...
प्रेरक संदेश भी है। और भी बहुत कुछ... साहित्यिक दृष्टि से भी सुंदर, सटीक और सार्थक रचना
नमन लेखनी।

-नरेन्द्र श्रीवास्तव
---------------------


आदरणीया रमा जी का यह हाइकु एक सुंदर मोहक दृश्य उपस्थित कर रहा है।हाइकु पढ़ते ही सम्पूर्ण दृश्य आंखों के सामने उपस्थित हो जाता है । संभवत साँझ या रात्रि का समय है जब लेखिका ने इसे अनुभूति किया । "गंगा नदी  में तैरता माटी का दीया " जिधर जिधर से गुजरता है वो अंधेरे को चीरता हुआ जाता है। जिधर से गुजरे उधर प्रकाश देता है । जैसा कि आदरणीय व्योम जी ने कहा मुझे भी इसको पढ़ कर यही अनुभूति होती है माटी के दीये जैसा क्षणभंगुर जीवन है माटी के दीये को अर्थ तब तक नही मिलता जब तक उसमे रोशनी नही भरी जाये । हमारा ये शरीर ये जीवन भी इसी तरह का क्षणभंगुर है और इसकी सार्थकता तभी है जब हम अपनी आत्मा को प्रकाशवान करे । अपने कर्म और व्यवहार से अपना अपना जीवन भी आलोकित करें और औरो के भी काम आये औरों के लिए भी जियें । 
प्रकाश भरे स्वयं में फिर अन्य में । 
हालांकि मुझे भी संजय जी और तुकाराम जी के कथनानुसार इसमें थोड़े और सुधार की आवश्यकता महसूस हो रही है जिससे की इसका अर्थ और उभर कर आये 

-सुनीता अग्रवाल नेह
---------------------


मिट्टी के दिये को पता है, किसी भी समय गंगा की तेज लहरों में वह समा जाएगा,फिर भी वह प्रयत्नशील है अपनी रोशनी से जग के अंधकार को दूर करने जा प्रयास कर रहा है, कर्म का ज्ञान दे रहा है जीवन की सार्थकता को दर्शा रहा है, अंतिम क्षणों तक उम्मीद का दामन थाम हुये है।

-नीलम अजित शुक्ला
---------------------


बहुत सुंदर व सार्थक हाइकु ।इसमें जहाँ मिट्टी के दिए का महत्व रेखांकित किया है वहीं माँ गंगा की महिमा भी प्रकट हो रही है कि मिट्टी के दिए जैसी बस्तु को प्रकाशमान कर दिया ।
 बहन रमा द्विवेदी जी,जहाँ बधाई की पात्र हैं, वहीं माननीय व्योम जी को अत्यंत साधुवाद कि उनकी पारखी दृष्टि से इतना बढ़िया हाइकु वर्कशॉप के लिए चुना।
   
-आर बी अग्रवाल 
---------------------


रमा जी के इस हाईकु का भाव नि:संदेह गहन है, मैं भी इसे इस, रूप में देखती हूँ कि माटी का यह नश्वर तन संसार रूपी गंगा में बह रहा है.
प्रकाश आत्मा का प्रतीक... 
परंतु मैं विभा जी से सहमत हूँ कि पंक्तियां स्वतंत्र नहीं हैं.. 
एक सुझाव मात्र यह है कि इसे इस प्रकार कर लिया जा
प्रकाश भरे
गंगा में तैरते हैं
मिट्टी के दिये

-बुशरा तबस्सुम
---------------------


आदरणीया रमा द्विवेदी का सहज सरल शब्दों में लिखा गया हाइकु गहन विचार लिए हुए है । मूल भाव तो रचनाकार ही जानता है ,परंतु इस हाइकु पर लिखे गये लोगों के विचार, व्याख्या से हाइकु की श्रेष्ठता है । 
आध्यात्मिक एवं भारतीय दर्शन का बोध करता, आशावादी प्रकाशवान दृष्टिगत होता है । बधाई ..।

-शिव डोयले
---------------------

आदरणीया रमा द्विवेदी जी के इस हाइकु में सांध्यकालीन आरती व शंखनाद-मंत्रोच्चार का दृश्य स्वमेव ही जीवन्त हो उठा । पावन दिये सहज सौन्दर्य का आलोक बिखेरकर अद्भुत दृश्य उपस्थित कर रहे हैं । आध्यत्मिक अर्थ में गंगा में देह विसर्जन अन्तिम सत्य है और उससे पहले इस लघु जीवन को सार्थक कर जाने का संकेत है । बहुत-बहुत बधाई

-पुष्पा सिंघी
---------------------

कई बार ऐसा होता है कि हाइकुकार असमंजस में रह जाता है कि पहली पंक्ति ये होगी या तीसरी ये ।
मुझे इसी के कारण ऐसा हुआ  लगता है । कुल मिलाकर भाव , बिम्ब स्पष्ट है ।
कोई भी हाइकु पाठकों के मन में कई भाव भी लेकर आता है क्योंकि इसमें बहुत कुछ अनकहा रह जाता है ।
अक्सर हममें ऐसा होता है कि हाइकु की सूक्ष्मता के कारण कई माह या वर्ष पहले के दृश्य  स्मृति पटल पर से फिसल जाते हैं  ।
एक अच्छे हाइकु  के लिए  बधाई जिसमें दोनों भाव स्पष्ट हैं  लेकिन बुशरा जी की यह  बात गौर करने लायक मुझे  लगती है ।

-रमेश कुमार सोनी
---------------------

संस्कृति की एक सात्विक व सकारात्मक आस्था की सक्रिय ऊर्जा को संचारित करता एक समर्थ हाइकु!साधुवाद रमा जी!

-डॉ. मधु चतुर्वेदी
---------------------


कोई कवि जब कविता लिखता है या हाइकु लिखता है तो लिखते समय उसके सामने रचना के एक या दो अर्थ ही ध्यान में होते हैं। लेकिन जब रचना पाठकों के सामने आती है तो पाठक अपनी बुद्धि चातुर्य से उसमें तमाम अर्थ खोज लेते हैं।
रमा द्विवेदी ने यह हाइकु 2013 में लिखकर फेसबुक पर पोस्ट किया और भूल गईं, उन्हें याद भी नहीं रहा कि यह हाइकु उन्होंने लिखा है। यह उनकी दरियादिली ही है।
लेकिन मुझे उनके इस हाइकु में कुछ ऐसा लगा कि इसे समूह में चर्चा के लिए रखा जाए।
आप सबने अपने अपने स्तर से इसे जाँचा परखा और जो टिप्पणियां लिख कर पोस्ट की हैं उनको समग्रता की दृष्टि से देखा जाए तो यह किसी हाइकु की बहुआयामी समीक्षा उभर कर सामने आती है।
इन टिप्पणियों के बहाने हम सब सामूहिक रूप से हाइकु की समझ को स्वयं में भी विकसित कर रहे होते हैं और सामूहिक रूप से एक दूसरे से अनायास ही बहुत कुछ सीखते रहते हैं।
रमा  जी के इस हाइकु के बहाने आज पूरे दिन बहुत अच्छी और सार्थक चर्चा हुई।
सभी का आभार और रमा द्विवेदी जी का विशेष आभार अपने इस हाइकु पर चर्चा करने की अनुमति देने के लिए।
कल फिर किसी हाइकुकार के हाइकु को चर्चा के लिए रखेंगे।
पुनः एक बार फिर सभी का धन्यवाद।

-डा जगदीश व्योम
14-05-2020
---------------------

आदरणीय  रमा जी सुन्दर  हाइकु  और मिट्टी  के दिये की बात से आज जीवन मे रोशनी को आहट दी । बहुत सुन्दर  अभिव्यक्ति ।

-पूनम मिश्रा 'पूर्णिमा '
---------------------

सुंदर हाइकु रमा जी .... हार्दिक बधाई
इस हाइकु के अनेक अर्थ सामने आए । सभी रचनाकारों ने बहुत विस्तारित विश्लेषण कर टिप्पणी की, सभी को बहुत शुभकामनाएँ ।

-डॉ. पूर्वा शर्मा
---------------------

आप सभी सम्मानित मित्रो का अंतस की गहराइयों से आभार प्रेषित करती हूं । आदरणीय डॉ व्योम जी आपका आभार किस प्रकार व्यक्त करूं , मेरे पास शब्द ही नहीं है। आपके ही कारण मेरा अनमोल खोया हुआ  हाइकु ही नहीं मिला बल्कि आपने उस पर अत्यंत सार्थक परिचर्चा भी करवा दी। आज का दिन मेरे लिए चिरस्मरणीय रहेगा आदरणीय । आपने मुझे अनमोल उपहार दिया है , मन से आनंदित हूं आदरणीय डॉ व्योम जी। हाइकु पर कार्यशाला करवा कर हाइकु की श्रेष्ठता तक पहुंचने का यह बहुत उत्तम माध्यम है । यह निरंतर चलता रहे ताकि हम सब सक्रिय भी रहें और श्रेष्ठ हाइकु चयनित हो सकें ।  यह कार्य आप जैसे समर्पित पारखी एवं चिंतनशील विद्वान ही कर सकते हैं और हाइकु साहित्य को समृद्ध कर सकते हैं। हम सब इस कार्य में सहयोग करेंगे । आप  हमारा सदैव मार्गदर्शन करते रहें इन्हीं कामनाओं सहित सादर नमन आदरणीय

-डॉ रमा द्विवेदी
हैदराबाद
---------------------



No comments: