Tuesday, May 11, 2010

पर्स पर तितली

डा0 कुँअर बेचैन आज लोकप्रियता के उस शिखर तक पहुँच चुके हैं जहाँ पहुँच कर कवि और कविता दोनों एक दूसरे के पर्याय हो जाते हैं। हिन्दी साहित्य की अनेकानेक विधाओं में सृजित उनकी जीवंत कविताएँ धुर देहात से लेकर महानगरों एवं दुनिया के तमाम देशों में पूरे मनोयोग से पढ़ी व सुनी जाती हैं। विगत कुछ वर्षों से हाइकु कविताएँ लिखकर हिन्दी हाइकु पाठकों को डॉ0 बेचैन ने खासा प्रभावित किया है। ‘पर्स पर तितली’ हाइकु-संग्रह हिन्दी हाइकु प्रेमियों के लिए एक सुखद सौगात है। ‘पर्स’ ‘पर’ ‘तितली’ कहने को तो मात्र तीन शब्द हैं परन्तु इन्हें पढ़ते समय अभिव्यक्ति की एक के बाद एक तमाम परतें खुद व खुद खुलती चली जाती हैं। ऐसी सहजता के साथ किसी गहरी अनुभूति को हाइकु में प्रस्तुत कर देना डा0 कुँअर बेचैन जैसे बड़े कद वाले कवि के ही बूते की बात है। यही हाइकु का उत्स है। इस हाइकु संग्रह के अधिकतर हाइकु ऐसे हैं जो पाठकों को कई-कई बार पढ़ने के लिए विवश करेंगे। हाइकु प्रेमियों को पर्स पर बैठी तितली की बेसब्री से प्रतीक्षा है कि कब यह ‘तितली’ सद्य प्रकाशित हाइकु संग्रह को अपने पंखों में समेट कर उन तक पहुँचे और वे अपने लोकप्रिय कवि को हाइकुकार के रूप में भी पढ़ सकें। ‘पर्स पर तितली’ हाइकु संग्रह के प्रकाशन अवसर पर डा0 कुँअर बेचैन जी को समस्त हाइकु दर्पण परिवार की ओर से हार्दिक वधाई।




-डा0 जगदीश व्योम

संपादक

हाइकु दर्पण

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