अँधेरी रात
फटी चटाई पर
ज़ख्मी सपने
-डा० सूरजमणि स्टेला कुजूर
फटी चटाई पर
ज़ख्मी सपने
-डा० सूरजमणि स्टेला कुजूर
लौट आने को
करता मनुहार
अपना गाँव
-डा० सूरजमणि स्टेला कुजूर
करता मनुहार
अपना गाँव
-डा० सूरजमणि स्टेला कुजूर
नदी के पार
गूँजता अनहद
जलपाखी-सा
-डा० सूरजमणि स्टेला कुजूर
गूँजता अनहद
जलपाखी-सा
-डा० सूरजमणि स्टेला कुजूर
ढेकी कूटती
वह आदिवासिनि
जीवन्त कला
-डा० सूरजमणि स्टेला कुजूर
वह आदिवासिनि
जीवन्त कला
-डा० सूरजमणि स्टेला कुजूर
वनों में छूटे
पढ़ाई की भूख में
सब अपने
-डा० सूरजमणि स्टेला कुजूर
पढ़ाई की भूख में
सब अपने
-डा० सूरजमणि स्टेला कुजूर
झलक रहा
दीये की रोशनी में
माँ का वदन
-डा० सूरजमणि स्टेला कुजूर
दीये की रोशनी में
माँ का वदन
-डा० सूरजमणि स्टेला कुजूर
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