Sunday, September 24, 2017

अँधेरी रात

अँधेरी रात
फटी चटाई पर
ज़ख्मी सपने
-डा० सूरजमणि स्टेला कुजूर


लौट आने को
करता मनुहार
अपना गाँव
-डा० सूरजमणि स्टेला कुजूर

नदी के पार
गूँजता अनहद
जलपाखी-सा
-डा० सूरजमणि स्टेला कुजूर

ढेकी कूटती
वह आदिवासिनि
जीवन्त कला
 -डा० सूरजमणि स्टेला कुजूर

वनों में छूटे
पढ़ाई की भूख में
सब अपने
 -डा० सूरजमणि स्टेला कुजूर

झलक रहा
दीये की रोशनी में
माँ का वदन

-डा० सूरजमणि स्टेला कुजूर

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