कन्नड़ में शा० बालूराव ने कुछ हाइकु लिखे हैं, उनका कन्नड़ में लिखा एक हाइकु जिसका हिन्दी अनुवाद गिरधर राठी ने किया है-
==कन्नड़ हाइकु==
नदिय दंडिगे मेले
गाळि बेरळिन आट
अलेय अश्रुत गान
-शा० बालूराव
(हाइकु 18, अगस्त 1982)
==हिन्दी अनुवाद==
दरिया की डंडी पर
हवा की अंगुलियों की थिरकन
लहरों के अनसुने गीत
(अनुवाद : गिरधर राठी)
==कन्नड़ हाइकु==
नदिय दंडिगे मेले
गाळि बेरळिन आट
अलेय अश्रुत गान
-शा० बालूराव
(हाइकु 18, अगस्त 1982)
==हिन्दी अनुवाद==
दरिया की डंडी पर
हवा की अंगुलियों की थिरकन
लहरों के अनसुने गीत
(अनुवाद : गिरधर राठी)
1 comment:
आ.व्योम जी सर्वप्रथम हार्दिक आभार इस कार्यशाला के आयोजन के लिए...इससे सभी को लिखने का अवसर मिला और एक ही चित्र में निहित अलग -अलग भावों ,कल्पनाओं के सजीव शब्द -चित्र देखने को मिले .आपकी विषद प्रतिक्रियाओं और सभी के हाइकु पढ़कर चित्र के विषय की व्यापकता से ज्ञानवर्धन हुआ है .
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