Friday, September 23, 2011

मीना अग्रवाल

ईर्ष्या का धुआँ
छा जाता, दृष्टिपथ
बनता कुआँ
-मीना अग्रवाल


संबन्ध राख
चढ़ती स्नेह पर
न कोई साख
-मीना अग्रवाल


आस की डोर
पहुँचाती ऊपर
पकडे़ छोर
-मीना अग्रवाल

5 comments:

रंजू भाटिया said...

बहुत खूब सभी ..बेहतरीन

डा.मीना अग्रवाल said...

व्योमजी, मेरे हाइकु आपने ‘हाइकु दर्पण’ में प्रकाशित किए,बहुत-बहुत आभारी हूँ. रजनीजी और स्वातिजी के हाइकु आज के संदर्भ में सटीक हैं. दोनों को बधाई.
मीना अग्रवाल

डा.मीना अग्रवाल said...

व्योमजी, मेरे हाइकु आपने ‘हाइकु दर्पण’’ में प्रकाशित किए,बहुत-बहुत आभारी हूँ. रजनीजी और स्वातिजी के हाइकु आज के संदर्भ में सटीक हैं. दोनों को बधाई.
मीना अग्रवाल

त्रिलोक सिंह ठकुरेला said...

Meena Agrawal,Swati Bhalotiya evam Rajani Bhargav sabhi ke haiku bahut achchhe hai.
TRILOK SINGH THAKURELA

SANDEEP PANWAR said...

शुभ दीपावली