हाइकु हंस
हौले से हवा हुआ
काँपा शैवाल ।
-डॉ॰ जगदीश व्योम
(प्रो० सत्यभूषण वर्मा के प्रति)
ढलती रात
दरिया से कहती
विदा लें हम।
-संजय कुमार सराठे
जूही की कली
महके तन मन
हुई बावरी
-प्रत्यक्षा
याद बौराई
रातरानी महकी
नींद न आई।
–डा० गोपाल बाबू शर्मा
ऊँट मेमना
दूर क्षितिज पर
जुड़े बादल।
–प्रो० आदित्य प्रताप सिंह
दूर क्षितिज पर
जुड़े बादल।
–प्रो० आदित्य प्रताप सिंह
नभ की पर्त
चीर गई चिड़िया
देखा साहस।
–मदन मोहन उपेन्द्र
चीर गई चिड़िया
देखा साहस।
–मदन मोहन उपेन्द्र
सजे हुए हैं
पलाश की दूकान
लाल झुमके।
–नलिनी कान्त
झाँझी तू बोल
गुम हो गए कैसे
टेसू के बोल।
–सन्तोष कुमार सिंह
गुम हो गए कैसे
टेसू के बोल।
–सन्तोष कुमार सिंह
खिले कमल
जलाशय ने खोले
सहस्र नेत्र।
–रमाकान्त श्रीवास्तव
जलाशय ने खोले
सहस्र नेत्र।
–रमाकान्त श्रीवास्तव
ओढ,के सोई
कोहरे की चादर
जाड़े की रात।
–डा० राजेन जयपुरिया
कोहरे की चादर
जाड़े की रात।
–डा० राजेन जयपुरिया
उकड़ूँ बैठी
शर्मसार पहाड़ी
ढूँढ़ती साड़ी।
–उर्मिला कौल
शर्मसार पहाड़ी
ढूँढ़ती साड़ी।
–उर्मिला कौल
पहाड़ रोया
अनेक धार आँसू
झरना बहा।
–अशेष वाजपेई
अनेक धार आँसू
झरना बहा।
–अशेष वाजपेई
बच्चा हँसा
कायनात हँस दी
सूरज उगा।
–सरला अग्रवाल
कायनात हँस दी
सूरज उगा।
–सरला अग्रवाल
उगा जो चाँद
चुपके चुरा लाई
युवती झील।
–डा० शैल रस्तोगी
चुपके चुरा लाई
युवती झील।
–डा० शैल रस्तोगी
चिड़िया रानी
चार कनी बाजरा
दो घूँट पानी।
–डा० सुधा गुप्ता
चार कनी बाजरा
दो घूँट पानी।
–डा० सुधा गुप्ता
है जवान तू
भगीरथ भी है तू
चल ला गंगा।
–पारस दासोत
भगीरथ भी है तू
चल ला गंगा।
–पारस दासोत
कभी न कभी
पुष्पित होता बाँस
क्यों है उदास।
–डा० दिनेश पाठक
पुष्पित होता बाँस
क्यों है उदास।
–डा० दिनेश पाठक
कोंपल जन्मी
डरी डरी सहमी
हिरोशिमा में।
–डा० कमल किशोर गोयनका
डरी डरी सहमी
हिरोशिमा में।
–डा० कमल किशोर गोयनका
बुलाओ मुझे
पुआल के बिछौने
सोना चाहूँ मैं।
–डा० विद्याविन्दु सिंह
पुआल के बिछौने
सोना चाहूँ मैं।
–डा० विद्याविन्दु सिंह
नन्हें फूलों ने
लिखी लघुकथाएँ
ओस बूँदों से।
–राम निवास पंथी
लिखी लघुकथाएँ
ओस बूँदों से।
–राम निवास पंथी
पतझर में
बैठा उघारे तन
सूना जंगल।
–शम्भुदयाल सिंह सुधाकर
बैठा उघारे तन
सूना जंगल।
–शम्भुदयाल सिंह सुधाकर
मेरा ठिकाना
खुशबुओं की गली
ज़रूर आना।
–सरिता शर्मा
खुशबुओं की गली
ज़रूर आना।
–सरिता शर्मा
साँझ की बेला
पंक्षी ऋचा सुनाते
मैं हूँ अकेला।
–रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
पर्वत पर
उगती हरी घास
एकाकी मन।
–पूर्णिमा वर्मन
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